इंसान की भावनाएं और संवेदनाएं जाग जाए तो व्यक्ति यज्ञ का प्रतीक बन जाता है:डॉ. चिन्मय पंड्या
सोमवार, 13 जून 2022
बिजौलियां(जगदीश सोनी)।शांतिकुंज हरिद्वार से आए देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या का बिजौलियां पहुंचने पर गायत्री परिवार के सदस्यों द्वारा स्वागत किया गया। डॉ.उदयपुर से कोटा जाते समय बिजौलियां रुके और ऊपरमाल क्षेत्र के उमाजी का खेड़ा, गणेशपुरा, लक्ष्मीनिवास,लक्ष्मी खेड़ा, छोटी बिजौलियां और बिजौलियां कस्बे में गायत्री परिवार के परिजनों के घर भी पहुंचे। उसके बाद गायत्री शक्तिपीठ में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. पंड्या ने गायत्री परिजनों को संबोधित करते हुए कहा कि चिंतन और सोच में श्रद्धा और भावनाओं में पवित्रता आती है तो इंसान को महामानव और भगवान बनते देखा जा सकता है। जो चमत्कार घटित होते हैं वह श्रद्धा के आधार पर ही घटते हैं। हाल ही में बिजौलियां कस्बे में हुए 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ को लेकर डॉ. पंड्या ने कहा कि यज्ञ से उत्पन्न ऊर्जा,आभा,पवित्रता और प्रतिष्ठा जिस तरह से सर्वत्र व्याप्त हुई है। इस क्षेत्र के लिए नवीन संभावना को लेकर आई हैं।जब-जब इंसान की भावनाओं में कलुषता और विषाक्तता आई है, हमारे ऋषियों ने यज्ञ की परंपरा को जन्म दिया है। इंसान के मन के अंदर गलत भावनाओं,असुरता व नकारात्मकता की शुद्धि के लिए यज्ञ जैसे आध्यात्मिक प्रयोग किए जाते हैं। जिसके अंदर इंसानियत,करुणा,त्याग और बलिदान आ गया उसका जीवन जीती जागती यज्ञशाला बन जाता है।यज्ञ हमें सिखाता है कि मनुष्य का दिल बड़ा हो जाए और जिस मनुष्य का दिल बड़ा हो जाता है वह देवता बन जाता है। व्यक्ति को बांटने का भाव आ जाए,इंसान की भावनाएं और संवेदनाएं जाग जाए तो व्यक्ति यज्ञ का प्रतीक बन जाता है।डॉ. चिन्मय पंड्या विश्व स्वास्थ्य संगठन की सूची में एक विशेषज्ञ के रूप में भी आमंत्रित है।साथ ही आध्यात्मिक क्षेत्र व समाज सेवा के क्षेत्र में सराहनीय प्रयासों के लिए विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किए जा चुके है। आध्यात्मिक क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर नोबेल पुरस्कार के समकक्ष टेंपलटन पुरस्कार की ज्यूरी के सदस्य भी है, जो समूचे भारत के लिए गौरव की बात है। डॉ.पंड्या पहले भारतीय हैं तो इस चयन समिति के सदस्य हैं।