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दिगंबर जैन समाज ने पर्युषण पर्व के अंतिम दिन निकाली श्रीजी की शोभायात्रा

दिगंबर जैन समाज ने पर्युषण पर्व के अंतिम दिन निकाली श्रीजी की शोभायात्रा



बिजौलियां (जगदीश सोनी)। दिगम्बर जैन समाज द्वारा विगत दस दिनों तक मनाएं जाने वाले पर्युषण पर्व का शुक्रवार को समापन हो गया। पर्युषण पर्व की समाप्ति के अवसर पर सकल दिगम्बर जैन समाज द्वारा नगर में शोभायात्रा निकाली गई। जिसमे समाज के वयोवृद्ध से लेकर युवा, बालक, बालिकाए एवं महिलाओं ने भाग लिया।जुलूस दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर  से आरंभ होकर नगर के प्रमुख मार्गों से गुजर कर चित्तौड़ा उत्सव भवन पहुंच जहां पर समाजजनों द्वारा भगवान श्रीजी की पूजा अर्चना व अभिषेक किया गया। इसके पश्चात पुनः जुलूस बड़ा मंदिर  पहुँचा।
*पर्युषण पर्व पर एक नजर*
पर्युषण पर्व के दौरान विगत दस दिनों तक कस्बे के दिगंबर जैन बड़ा मंदिर , छोटा मंदिर , सीमंधर जिनालय व तपोदय तीर्थ पार्श्वनाथ जी पर समाजजनों ने मिलकर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए।
*दिगंबर जैन समाज का महापर्व पर्युषण* .
 जैन धर्म के इस त्योहार को पर्वों का राजा कहा जाता है। जैन धर्मावलंबियों के लिए यह त्योहार काफी महत्व रखता है।भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है और मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है।
दिगंबर जैन समाज के लोग पयुर्षण पर्व को दशलक्षण पर्व से भी संबोधित करते हैं. इसमें 10 दिन का व्रत होता है।सभी अलग-अलग दिनों में इंसान को अपने व्यवहार और कर्म को ध्यान में रखकर कार्य करना होता है।
*पर्युषण पर्व का महत्व*
पर्व का मूल आशय है मन के सारे विकारों को नष्ट करना। इस त्योहार को मनाते हुए लोग अपने मन के बुरे विचारों को खत्म करने का संकल्प लेते हैं। उनका मानना है कि यदि इंसान मन के तमाम विकारों एवं दुष्प्रभावों पर नियंत्रण रखना सीख जाए तो जीवन में शांति एवं पवित्रता आती है। यह पर्व अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाले जियो और जीने दो पर संदेश देता है। इन्हीं महत्ता के कारण जैन समुदाय इस पर्व को राजा मानता है जैन धर्म धर्मावलंबियों के मतानुसार मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है
*क्यो मनाते है पर्युषण पर्व*
सालभर  जितने भी पाप कर्म किए हैं, जैसे किसी को दुख,कष्ट,क्रोध एवं बैर भाव पहुंचाया हो, इन सब के लिए क्षमा याचना करने के लिए  पर्यूषण पर्व मनाते हैं। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि आगे आने वाले समय में अपनी गलतियों को ना दोहराएं। पर्युषण पर्व के अंतिम दिन जिसे  सव चरित्र कहते हैं। वह दिन हर जैन समाज के लिए महत्वपूर्ण दिन कहा जाता है।

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