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दिव्य चातुर्मास सत्संग में श्री दिव्य मोरारी बापू ने कथा में श्री गणेश जी के विवाह प्रसंग पर वाचन किया।

दिव्य चातुर्मास सत्संग में श्री दिव्य मोरारी बापू ने कथा में श्री गणेश जी के विवाह प्रसंग पर वाचन किया।

गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव) स्थानीय सार्वजनिक धर्मशाला में चल रहे श्रीदिव्य चातुर्मास के पावन अवसर पर 'सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय' (भव्य-सत्संग) में श्रीमद् गणेश महापुराण कथा 
ज्ञानयज्ञ (मंगल-दिवस) में
कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू  , ने श्री गणपति जी का विवाह प्रसंग पर वाचन किया! महाराज श्री ने कहा कि
श्री गणेश महापुराण में लिखा है कि जैसे बछड़े की और गाय अपने आप दौड़ी आती है। ठीक इसी तरह भगवान भी अपने भक्तों के पीछे दौड़े-दौड़े चले आते हैं। आप सोचते होंगे कि हम भगवान से प्रेम करते हैं, भगवान हमसे नहीं प्रेम करते। लेकिन ऐसा नहीं है, अगर आप भगवान से प्रेम करते हैं तो भगवान भी आपसे प्रेम करते हैं। यदि गाय बछड़े से प्रेम करती है तो बछड़ा भी गाय से प्रेम करता है। भगवान ने वचन दिया है-
ये यथा मां प्रपद्यंते तांस तथैव भजाम्यहं।
जो व्यक्ति मुझे जिस रूप में भजता है, उसी रूप में प्रकट होकर, उसकी कामना पूर्ण करता हूं। श्री गणेश महापुराण में वर्णन है कि- गणपति भगवान सूर्य बनकर दर्शन देते हैं। विष्णु के रूप में दर्शन देते हैं, सिंहवाहिनी भगवती दुर्गा के रूप में दर्शन देते हैं, विनायक के रूप में दर्शन हो रहा है। तत्व तो मूल में एक ही है। भगवान के नाम और रूप अनेक हैं लेकिन भगवान एक हैं।" एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति"।

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