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मनुष्य जिस वस्तु की इच्छा करें, उसे पुरुषार्थ कहते है। == श्री दिव्य मोरारी बापू

मनुष्य जिस वस्तु की इच्छा करें, उसे पुरुषार्थ कहते है। == श्री दिव्य मोरारी बापू

गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव) स्थानीय सार्वजनिक धर्मशाला में चल रहे   श्रीदिव्य चातुर्मास सत्संग महामहोत्सव में श्रीमद् विष्णुमहापुराण कथा में कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने बताया कि मानव जिस वस्तु की इच्छा करे, वह पुरुषार्थ कहता है। सो-(क) धर्म , (ख)अर्थ , (ग)काम , (घ)आत्मानुभव ,(ङ)भगवद् अनुभव , ये पांच प्रकार का है।
(क) धर्म÷ पुरुषार्थों में धर्म वो कहाता है। जिसके करने से जीव की रक्षा हो सके।जैसे-यज्ञ, दान आदि। (ख)अर्थ÷ यहां अर्थ उसको जानना चाहिए जो की वर्ण आश्रम योग्य धन और अन्नादि संग्रह करके देवताओं के कार्य में,पितरों के कार्य में, और जीवों के कार्य में अच्छे देश,  समय पात्र जानकर धर्म की बुद्धि से खर्च किया जाय।
(ग)काम÷ काम दो प्रकार का है। एक ऐहिलौकिक जो इसी लोक में भोगा जाता है। दूसरा पारलौकिक जो परलोक में भोगा जाता है।
(घ) केवल पुरुषार्थ÷ केवल पुरुषार्थ उसको कहते हैं, जिसमें दुख की निवृत्ति मात्रा हो जाय। और केवल अपने आत्मा का अनुभव हो। इसको भी मोक्ष कहते हैं।
(ङ) भगवदानुभव- परमपुरुषार्थ÷ अस्ति, जायतेे,  परिणमते , विवर्धते, अपक्षीयये,विनश्यति, ये छः भाव इस शरीर में रहते हैं। तीन प्रकार के ताप भी इसी स्थूल शरीर में होते हैं।यही शरीर भगवान को जानने में आवरण हो जाता है। और विपरीत ज्ञान को पैदा करता है।इस दौरान श्री दिव्य सत्संग चातुर्मास मंडल के व्यवस्थापक घनश्यामदास महाराज, गुलाबपुरा श्री दिव्य सत्संग मंडल अध्यक्ष अरविंद माहेश्वरी सहित कई श्रद्धालु मौजूद थे।

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