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ईश्वर प्राणी मात्र के ह्रदय में निवास करते है। = श्री मोरारी बापू।

ईश्वर प्राणी मात्र के ह्रदय में निवास करते है। = श्री मोरारी बापू।

बिजयनगर (रामकिशन वैष्णव) 
श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर स्वामी श्रीगंगेश्वरानंद जी महाराज की असीम अनुकंपा एवं पावन सानिध्य में श्री हरिद्वार की पावन भूमि पर आयोजित श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ कथा में
कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने शिवनारायण तैमिनी एवं तैमिनी परिवार-श्री अयोध्या धाम आश्रम पुराना ऋषिकेश रोड भूपतवाला हरिद्वार (उत्तराखंड)द्वारा आयोजित कथा में बताया कि  भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा था कि- मैं जरासंध आदि दानवों के कारण समुद्र के मध्य द्वारिका में रहता हूं। महारानी रुक्मिणी कहती हैं- भगवन् समुद्र का अर्थ शरीर से है और द्वारिका का अर्थ हृदय से है। शरीर के हृदय देश में आत्मा रूप से आप ही विराजने वाले हैं। श्रीमद्भगवत गीता में भी भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- ईश्वर प्राणी मात्र के हृदय देश में निवास करता है। उपनिषदों में वर्णन आता है कि हृदय में ईश्वर और जीव दोनों का भी निवास है। जीव और ब्रह्म दोनों सखा हैं और दोनों हृदय देश में निवास करते हैं।इस दौरान कथा आयोजक, व्यवस्थापक श्री घनश्यामदास जी महाराज सहित कई श्रद्धालु मौजूद थे।

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