पुत्र का होना जितना आवश्यक है उससे भी ज्यादा कन्या का होना आवश्यक है। = श्री दिव्य मोरारी बापू
मंगलवार, 19 दिसंबर 2023
बिजयनगर (रामकिशन वैष्णव) चित्रगुप्त कोलोनी कोटा में चल रही संगीतमय श्री भागवत कथा में कथा व्यास महामंडलेश्वर श्री 1008 श्री दिव्य मोरारी बापू ने बताया कि राजा परीक्षित ने आचार्य श्रीशुकदेव जी से भगवान
श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के विवाह से संबंधित प्रश्न किया था,
आचार्य श्रीशुकदेवजी ने कहा महाराष्ट्र में विदर्भ कुण्डिनपुर के राजा महाराज भीष्मक थे। महाराज के पांच पुत्र थे। रुक्मी,रुक्मरथ, रूक्मकेश,रुक्ममाली और रुक्माग्रज, कन्या नहीं थी। धर्म शास्त्रों में वर्णन है कि- पुत्र का होना जितना आवश्यक है, उससे भी ज्यादा आवश्यक है। कन्या का होना ।' दस पुत्र समा कन्या ' दस पुत्र के समान एक कन्या होती है। पुत्र अगर संस्कारवान है, माता-पिता का शरीर पूरा होने के बाद अगर वह गया में जा करके पिंड आदि करता है, तो जो सद्गति माता-पिता को प्राप्त होती है। पुत्री को पढ़ा लिखा करके, योग्य बना करके, बड़े धूमधाम से पुत्री का विवाह करने से वही पुन्य माता-पिता को जीते जी प्राप्त हो जाता है। किसी ने गृहस्थ आश्रम स्वीकार किया, लेकिन अपने जीवन में एक कन्या का विवाह धूमधाम से नहीं कराया, तो उसका गृहस्थ आश्रम सफल हो गया ऐसा नहीं है। कई लोगों को संयोग से कन्या का जन्म नहीं होता तो भाई या किसी की कन्या को अपनी पुत्री मान करके, पढ़ा लिखा करके, उसका विवाह करके अपने गृहस्थ आश्रम को धन्य बनाते हैं।
राजा भीष्मक ने भगवती लक्ष्मी की आराधना किया, माता लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उनको दर्शन दिया और कहा वरदान मांगो। महाराज भीष्मक ने कहा हमें आप जैसी पुत्री चाहिए। माता लक्ष्मी ने कहा मेरे जैसा, मेरे अतिरिक्त कोई और नहीं है। मैं स्वयं आपकी पुत्री बनकर अवतार लूंगी,
और माता लक्ष्मी ही श्रीरुक्मिणी देवी के रूप में प्रकट हुई। भीष्मक महाराज ने अपनी पुत्री रुक्मिणी देवी का विवाह भगवान् श्रीकृष्ण के साथ किया। कथा में इस दौरान श्री दिव्य सत्संग व्यवस्थापक व आयोजक श्री घनश्यामदास जी महाराज, कमल कुमार शर्मा, सत्संग मंडल पदाधिकारी सहित सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।