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अगर व्यक्ति का स्वभाव अच्छा नहीं है, तो वो अकेला भी दुखी रहेगा= श्री दिव्य मोरारी बापू

अगर व्यक्ति का स्वभाव अच्छा नहीं है, तो वो अकेला भी दुखी रहेगा= श्री दिव्य मोरारी बापू

 गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव) सार्वजनिक धर्मशाला में चल रहे श्रीदिव्य चातुर्मास सत्संग 
महामहोत्सव श्रीमद्भागवत कथा में कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने  भगवान् श्री कृष्णा के सोलह हजार एक सौ आठ विवाहों की कथा और उसका आध्यात्मिक अभिप्राय पर विस्तार से वर्णन किया। श्री दिव्य मोरारी बापू ने बताया कि
भगवान् कृष्ण के 16108 विवाह हुए। इसकी कथा पुराणों में अलग-अलग जगह, अलग-अलग ढंग से बतायी गई है। श्रीमद्देवी भागवत महापुराण में नर नारायण भगवान बद्रीनाथ में तप कर रहे हैं, उनकी तपस्या से भयभीत होकर, इंद्र ने  विघ्न करने के लिए  अप्सराओं को भेजा। भगवान् सत्य संकल्प हैं,भगवान् का कोई भी कार्य असफल नहीं हो सकता। अप्सराओं ने बहुत प्रयास किया, लेकिन नर नारायण भगवान का तप भंग नहीं हुआ। भगवान ने उर्वशी नाम की अप्सरा को प्रकट कर भेंट किया और कहा इसको देवलोक अपने साथ ले जाओ। इंद्र से कहना जो तपस्वी है वह किसी पद प्रतिष्ठा की इच्छा ही नहीं करते, उनको ईश्वर की आराधना ही उनकी साधना है और वही उनका साध्य है। उन सबकी प्रार्थना से भगवान् नर-नारायण प्रसन्न हुए, वरदान मांगने के लिए कहा, अप्सराओं ने  नर-नारायण से कहा कि हम आपको छलने आए थे लेकिन हम स्वयं छले गए। भगवान् ने कहा जो वरदान मांगना हो मांग लो,  तो सभी अप्सराओं ने कहा आप हमसे विवाह करिए। भगवान ने कहा अभी हमारा तपस्वी अवतार   है। कृष्णावतार में वरदान पूर्ण करेंगे, उन अप्सराओं की संख्या 16108 थी। द्वापर में वही सब राज कन्या के रूप में अवतार लेकर भगवान से विवाह करती हैं। श्री विष्णु पुराण में कथा आती है कि- जैसे भगवान नारायण के अनंत अवतार हुए, वैसे भगवती लक्ष्मी के भी अनंत अवतार हुए हैं। द्वापर में जब भगवान श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेते हैं तो माता लक्ष्मी ही 16108 रूपों में अवतार लेकर भगवान के साथ विवाह रचाती है। और एक विशाल गृहस्थ का दर्शन कराया, जगत को बताया की आपका बड़ा परिवार दुःख का कारण नहीं है। आपका गलत स्वभाव ही दुःख का कारण है। अगर व्यक्ति का स्वभाव अच्छा नहीं है तो अकेले भी दुःखी रहेगी। अच्छे स्वभाव वाला व्यक्ति हर जगह सुखी रहेगा।
अध्यात्म दर्शन के अनुसार वेद की ऋचाएँ भगवान का गुणगान करते-करते, भगवान की समीपता का अनुभव करने के लिए द्वापर में राज कन्या के रूप में अवतरित हुईं। और भगवान के साथ विवाह रचाया।
हम आप भक्तों का भी भगवान में अनुराग हो और जीव भगवान को प्राप्त कर ले इसके सूत्र विवाह की कथा में हैं। कोई भी जीव भगवान की शरण में पहुंचा, भगवान किसी का परित्याग नहीं करते। शरणागत का मंगल करते हैं। कथा में श्री दिव्य चातुर्मास संत्सग मंडल के आयोजक घनश्यामदास जी महाराज, सत्संग मंडल अध्यक्ष अरविंद सोमाणी, नन्दलाल काबरा, एडवोकेट विजय प्रकाश, सुभाष चंद जोशी, सहित कई श्रद्धालुगण मौजूद थे।

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