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ज्ञानी की दृष्टि में सर्वत्र परमात्मा का दर्शन होता है। श्री दिव्य मोरारी बापू।

ज्ञानी की दृष्टि में सर्वत्र परमात्मा का दर्शन होता है। श्री दिव्य मोरारी बापू।

बिजयनगर (रामकिशन वैष्णव) श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन की  शुरुआत  कलश व शोभायात्रा के साथ हुई‌। आयोजक एवं व्यवस्थापक-
श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन
मुख्य यजमान कमल कुमार शर्मा ए, 4 चित्रगुप्त कॉलोनी कोटा के द्वारा व
कथा स्थल   श्री राम दिव्य वाटिका चित्रगुप्त कॉलोनी कोटा, (श्रीनाथपुरम् स्टेडियम गेट 
नंबर-3 के सामने जी0 ए0 डी0 सर्किल से कोटा डेरी मेन रोड) पर  गुरुवार से शुरुआत हुई। 
 कथा-दिनांक-14 दिसंबर 2023 से 20 दिसंबर 2023 तक,प्रतिदिन दोपहर 12:00 बजे से 4:00 तक आयोजित होगी। कथा व्यास श्री 1008 श्री महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने कथा के प्रारंभ में श्रीमद्भागवत महापुराण का माहात्म्य एवं राजाधिराज श्रीपरीक्षितजी की सभा में 
श्रीशुकदेवजी का आगमन पर बताया कि
श्रीशुकदेवजी के अवतरण से लेकर श्रीशुकदेवजी का राजा परीक्षित के सभा में आगमन का दर्शन करने से स्पष्ट हो जाता है कि श्रीशुकदेवजी के जीवन में भक्ति,ज्ञान और वैराग्य पूर्ण रूप से सदैव विद्यमान है।
1-ज्ञान किसे कहते हैं? ज्ञानी की दृष्टि में सर्वत्र परमात्मा का दर्शन होता है। परमात्मा के अतिरिक्त कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता।
श्रीशुकदेवजी की ऐसी दिव्य दृष्टि है कि- भागवत में वर्णन है- ' स्त्रीपुम्भिधा न तु सुतस्य विविक्त दृष्टिः'
 श्रीशुकदेवजी को कौन स्त्री है या पुरुष है इसका भी भेद नहीं है। उनके जीवन से भेद सर्वथा समाप्त हो गया है। उन्हें हर जगह अथवा हर किसी में श्री 
राधा-कृष्ण का ही दर्शन होता है। यही ज्ञान की सर्वोच्च स्थित है। 2-भक्ति- जब किसी के जीवन में भगवान की भक्ति आ जाती है तो उसके हृदय,वाणी,मन और 
रोम-रोम में भगवान,भगवान की लीला एवं नाम समा जाता है।
श्रीशुकदेवजी का मुख एक क्षण के लिए भी खाली नहीं रहता। भागवत में लिखा है- ' प्रेम्णा पठन् शनैःशनैः' हमेशा प्रेम पूर्वक भागवत के मंत्रों का पाठ करते रहते हैं। श्रीशुकदेवजी के जीवन में भक्ति का निरंतर पूर्ण रूपेण दर्शन होता है।
3-वैराग्य- वैराग्य का अर्थ है जिसे भगवान के अतिरिक्त कहीं भी 
आसक्ति न हो, उसे वैराग्यवान कहते हैं। श्रीशुकदेवजी जन्मजात महात्मा हैं।उन्होंने बाद में गृह त्याग किया ऐसा नहीं, जन्म लेते ही वन चले गये। मां-बाप की ममता भी उन्हें नहीं रोक पायी।
ज्ञान-भक्ति-वैराग्य से ही व्यक्ति का जीवन महान बनता है। अंश रूप में भी ज्ञान-भक्ति-वैराग्य बना रहे तो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से संपन्न होता है। श्रीशुकदेवजी का जीवन चरित्र श्रोता वक्ता के जीवन में ज्ञान,भक्ति और वैराग्य प्रदान करने वाला है।
राजा परीक्षित की सभा में 
श्रीशुकदेवजी का आगमन एवं उत्सव महोत्सव मनाया गया।इस दौरान सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु एवं महिलाऐं मौजूद थी।

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