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इस संसार के आदि ,मध्य और अंत भगवान् शिव ही है। = श्री दिव्य मोरारी बापू।

इस संसार के आदि ,मध्य और अंत भगवान् शिव ही है। = श्री दिव्य मोरारी बापू।

 बिजयनगर (रामकिशन वैष्णव)   संगीतमय श्रीशिवमहापुराण कथा ज्ञानयज्ञ , कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू  ने श्री मंशापूर्ण हनुमान मंदिर सेक्टर नंबर 2, 3 तलवंडी कोटा (राजस्थान) में चल रही कथा में बताया कि
श्रीशिवमहापुराण के मंगलाचरण में भगवान् व्यास कहते हैं कि- इस संसार के आदि मध्य और अंत भगवान् शिव हैं। भगवान् शिव की आराधना सभी करते हैं। भारतीय संस्कृति में दो देव ऐसे हैं जिसकी आराधना हर कोई करते हैं,एक तो भगवान शंकर और दूसरे मां भगवती। जहां भगवान राम रामेश्वर स्थापना के समय कहते हैं कि शिव हमारे आराध्य हैं, वही अतिशय बुरा कहा जाने वाला रावण भी अपने को शिव भक्त बताता है। जहां भगवान श्री कृष्णा भगवान शिव को अपना इष्ट देव बताते हैं, वहां अतिशय दुर्दांत रक्षा कंस भी अपने को शिव भक्त बताता है। भगवान शंकर को सब चाहते हैं, इसका कारण है भगवान शंकर के हृदय में सबके प्रति समान भाव है। हमारा आपका छोटा सा परिवार है, लेकिन इसमें कुछ लोग हमें चाहते हैं कुछ लोग नहीं चाहते हैं इसका कारण है हमारा सबके प्रति विषम भाव है। हम समान भाव वाले नहीं हो पाते हैं। किसी के प्रति उन्नीस भाव रहता है और किसी के प्रति इक्कीस भाव रहता है, इसलिए परिवार में कोई हमें चाहता है और कोई नहीं चाहता। अगर हम भगवान शंकर की आराधना करते हैं? शिव भक्त हैं? तो भगवान शंकर से यह बात हमें सीखना चाहिए। अपने परिवार में सबके प्रति समान भाव रखें तो सब हमें चाहेंगे। साधु संतों को एवं भगवान को सब चाहते हैं क्योंकि वे सबको चाहते हैं। आज पुत्र भी पिता की बात सुनने को तैयार नहीं है लेकिन संतो को हम सुनते हैं। क्योंकि वे विना भेद भाव के सबकी सुनते हैं, सबके लिए मंगल कामना करते हैं।
परिवार अथवा समाज में आपको कौन कितना चाहता है यह किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं है। यह आप अपने आप से पूछिए आप किसको कितना चाहते हैं। कथा में इस दौरान श्री दिव्य सत्संग आयोजक व व्यवस्थापक श्री घनश्यामदास जी महाराज एंव  सत्संग मंडल पदाधिकारी सहित कई श्रद्धालु मौजूद थे।

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