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स्टुट गार्ड जर्मनी में सत्संग एवं कलश शोभायात्रा में दिखा उत्साह

स्टुट गार्ड जर्मनी में सत्संग एवं कलश शोभायात्रा में दिखा उत्साह

शाहपुरा पेसवानी | रामस्नेही संप्रदाय के रामद्वारा चित्तौड़गढ़ के संत श्री रमता राम के पूज्य शिष्य श्री दिग्विजय राम का सत्संग एवं कलश शोभायात्रा का कार्यक्रम स्टूट गार्ड जर्मनी में बहुत ही उत्साह से संपन्न हुआ। कलश यात्रा में महिलाओं एवं बच्चों ने इतनी सर्दी में भी बड़े उत्साह से भाग लिया। संत श्री दिग्विजय राम ने सत्संग में बताया कि महिलाएं कलश क्यों धारण करती है कलश धारण करने से भगवान उनके जीवन के क्लेश समाप्त कर देता है। इस पाशात्य संस्कृति की धरा पर भौतिक सुख संसाधन तो बहुत है लेकिन अध्यात्मिक सुख अध्यात्म और धर्म से ही प्राप्त होता है आत्मिक सुख जिसे मन की शांति भी कहते हैं यह सत्संग से ही प्राप्त हो सकती है इस संसार में तीन वस्तुएं बहुत दुर्लभ है यह सहज प्राप्त नहीं होती इन तीन वस्तुओं में पहला मानव जीवन दूसरा धर्म के प्रति जिज्ञासा और तीसरा संतों का सानिध्य। सत्संग में महाराज श्री ने बताया की गोस्वामी जी ने रामायण का नाम रामचरितमानस क्यों रखा यह नाम इसलिए रखा गया की राम चरित्र मानस अर्थात राम चरित्र का सरोवर इसका मतलब है जो व्यक्ति अपने जीवन में रामचरितमानस का अध्ययन करता है वह राम चरित्र के सरोवर में डुबकी लगा लेता है जिससे वह इस भवसागर से पार हो जाता है अतः जीवन में तीन काम जरूर करने चाहिए जिसमे पहला राम भजन दूसरा साधु संतो के साथ सत्संग एवम साधु संतो के दर्शन और तीसरा महापुरुषों का संग इन्हीं तीनों कामों से मानव जीवन में मानव आत्मिक सुख पा सकता है। चित्तौड़गढ़ के रोहित जी जोशी ने स्टुट गार्ड जर्मनी में बहुत ही अच्छी व्यवस्था की एवं सभी अप्रवासी भारतीयों ने सत्संग एवं कीर्तन का आनंद लिया । जर्मनी में निवास करने वाले बांसी बड़ीसादड़ी के राकेश जी देवपुरा ने बताया संतों के आने से सभी लोग बहुत प्रसन्न और आनंदित हुए साथ ही आगामी वर्ष में भागवत कथा करने का भी आग्रह किया और अभी जो मंदिर है उसे मंदिर को विशाल रूप देने का भी संकल्प संतों के द्वारा जर्मनी के भक्तों को कराया गया । सभी लोगों में बहुत ही उत्साह आनंद और संतो के प्रति बड़ा प्रेम दिखाई दिया जर्मनी में निवास करने वाले सनातन धर्म को मानने वाले केवल भारत ही नहीं अपितु अफगानिस्तान पाकिस्तान व अन्य देशों से भी वहां पर उपस्थित रहे जिन्होंने सन्तों के सत्संग का लाभ लिया ।

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